पहले तेजस व 150 निजी ट्रेन की तैयारी, फिर एयर इंडिया की बारी
देश में होने जा रहा है सरकारी उपक्रमों का सबसे बड़ा निजीकरण
नई दिल्ली . कर्ज के बोझ तले दबी एयर इंडिया निजीकरण की ओर बढ़ रही है। सरकार अगले माह संभावित खरीददारों से इस संबंध में बातचीत शुरू करने जा रही है। एयर इंडिया को बेचने का यह दूसरा प्रयास होगा। मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में इसे निजी हाथों में देने की कोशिश कर चुकी है। 74 हजार करोड़ रुपए का कर्ज एयर इंडिया पर है। इतना ही नहीं, तीन तेल कंपनियों ने 18 अक्टूबर तक एयर इंडिया से उनका बकाया चुकाने को कहा है। ऐसा नहीं करने पर फ्यूल की सप्लाई रोकने की चेतावनी दी गई है। अकेली एयर इंडिया का ही निजीकरण नही हो रहा।
सरकार ने पांच प्रमुख पीएसयू (पब्लिक सेक्टर यूनिट्स) में विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपए जुटाने की तैयारी कर ली है। केंद्र सरकार ने भारत पेट्रोलियम, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, कंटेनर काॅर्पोरेशन, नाॅर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड व टीएचडीसी इंडिया के शेयर बेचने की अनुमति दे दी है। विनिवेश के लिए सरकार ने डिपार्टमेंट ऑफ इंनवेस्टमेंट एंड पब्लिक असेट मैनेजमेंट (दीपम) बनाया है। एक और बात, सरकार सिर्फ घाटे में चल रही कंपनियों में विनिवेश नहीं कर रही। शुरुआती जिन पांच कंपनियों-बीपीसीएल, कॉनकोर, सीएसआई, नीपको और टीएचडीसी को विनिवेश के लिए चुना गया है, इनमें से तीन लाभ में चल रही हैं। अकेले बीपीसीएल का वर्ष 2018-19 का मुनाफा 7 हजार करोड़ रुपए से अधिक रहा है।
एक और बात, इसे मौजूदा दौर में सरकारी उपक्रमों का सबसे बड़ा निजीकरण माना जा रहा है। गौरतलब है कि देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस को हरी झंडी दिखाने के बाद सरकार ने 50 रेलवे स्टेशनों और 150 ट्रेनों के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वहीं सरकार के इस कदम का कई कर्मचारी संगठन विरोध भी कर रहे हैं। देश में कई अलग-अलग स्थानों पर धरने-प्रदर्शन आयोजित कर विरोध किया जा रहा है। देश के 10 प्रमुख कर्मचारी संगठनों ने जनवरी 2020 में बड़ा विरोध प्रदर्शन करने की चतावनी दी है। इसमें देश के प्रमुख सार्वजनिक उपक्रम के कर्मचारी शामिल हो रहे हैं। निजीकरण की इस पूरी मुहिम का असर क्या होगा? सरकार को इससे क्या फायदा होगा? पांच पीएसयू के बाद किसकी बारी आएगी...जैसे स्वाभाविक प्रश्नों के जवाब आसान भाषा में समझिए।
"महाराजा' की बारी...सरकार अगले महीने से एयर इंडिया को निजी हाथों में देने की तैयारी शुरू कर रही है। आज देखिए...देश के सबसे चहेते शुभंकर महाराजा के तीन ऐतिहासिक पोस्टर।
सात सवाल-जवाबों में समझिए इस पूरे मामले को
1. सरकार हिस्सेदारी क्यों बेच रही है?
दो बड़ी वजह जो स्पष्ट दिखती हैं।
> जीएसटी-आयकर का कम संग्रह
सरकार के हर महीने लगभग 1 लाख करोड़ रुपए यानी सालाना 12 लाख करोड़ रुपए अनुमान की तुलना में जीएसटी संग्रह कम हो रहा है। पिछले वित्त वर्ष यानी 2018-19 में उसे 05.18 लाख करोड़ ही मिले। वहीं आयकर संग्रह भी अनुमान के मुताबिक नहीं बढ़ रहा है। हालिया काॅरपोरेट टैक्स में छूट देने से ही सरकार काे 1.45 लाख करोड़ कम मिलेंगे।
> प्रोजेक्ट्स पूरे करने हैं, पैसे चाहिए
अर्थव्यवस्था के आठ कोर सेक्टर्स का उत्पादन पिछले साल अगस्त के मुकाबले 0.5% तक कम हुआ है। सरकार को अपने कई प्रोजेक्ट्स भी पूरे करने हैं। ऐसे में पैसों की तत्काल जरूरत है। वित्तीय घाटे को भी पूरा करना है। इसके लिए विनिवेश ही एकमात्र उपाय है।
2. कितनी हिस्सेदारी बेची जा रही है?
पीएसयू शेयर
भारत पेट्रोलियम 53.29%
शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया 63.75%
कंटेनर काॅर्पोरेशन 30.00%
नार्थ ईस्टर्न इले. पावर कार्पो. लि. 100%
टीएचडीसी इंडिया 75.00%
3. सरकार को कितना पैसा मिलेगा?
सिर्फ भारत पेट्रोलियम के शेयरों की बिक्री से ही 54,055 करोड़ रुपए मिलेंगे। कंटेनर कॉर्पोरेशन के शेयर की बिक्री से 11,051 करोड़ व शिपिंग कॉर्पोरेशन के शेयरों की बिक्री से लगभग 1282 करोड़ रुपए मिलेंगे। केंद्र सरकार ने मार्च 2020 तक विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य तय किया है। इसकी प्रक्रिया शुरू हाे चुकी है।
4. पांच पीएसयू के बाद आगे क्या?
सरकार ने 74 सीपीएसयू (सेंट्रल पब्लिक सेक्टर यूनिट्स) को चिन्हित किया है। इनमें से 26 को पूरी तरह बंद किया जाना है, जबकि 10 में विनिवेश की बात कही जा रही है। इस सूची में ओएनजीसी, गेल, ऑयल इंडिया लिमिटेड, इंडियन ऑयल काॅर्पोरेशन, बीएचईएल, भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड जैसी नवरत्न, महारत्न व मिनीरत्न प्राप्त सार्वजनिक कंपनियां शामिल हैं।
इस चार्ट से समझिए चिह्नित कंपनियों की स्थिति
कंपनी मुनाफा मार्केट कैप कर्मचारी
बीपीसीएल 7354 105859 2157
कॉनकोर 1200 34376 1473
सीएसआई 253.75 19995 6242
नीपको 268.00 38127 1983
टीएचडीसी 1251 9280 1891
> मुनाफा और मार्केट कैप करोड़ रुपए में दिया है। बीपीसीए, कॉनकोर, टीएचडीसी की स्थिति 2018-19 की है। अन्य दो की 2017-18 की है।
5. कर्मचारियों का क्या होगा?
केंद्र सरकार ने िफलहाल जिन पांच पीएसयू के शेयर बेचने की अनुमति प्रदान की है उसमें से केवल भारत पेट्रोलियम में ही 12,157 कर्मचारी हैं। इसी तरह ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन में 1983, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में 6000 से अधिक कर्मचारी हैं। कर्मचारी यूनियंस का दावा है कि विनिवेश के चलते बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी खाेनी पड़ सकती है।
6. तो क्या अब बीएसएनएल की बारी है
वित्त मंत्रालय ने सरकार द्वारा संचालित दो टेलीकॉम कंपनियों- बीएसएनएल और एमटीएनएल को बंद करने की सिफारिश की है। डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशंस ने बीएसएनएल और एमटीएनएल की हालत सुधारने के लिए 74 हजार करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव दिया था, जिसे केंद्र सरकार ने ठुकरा दिया था। डीओटी की ओर से यह भी कहा गया है कि इन दोनों कंपनियों को बंद करने की लागत तकरीबन 95 हजार करोड़ रुपए आएगी।
7. क्या बीजेपी सरकार ही निजीकरण कर रही है
1991 में नरसिम्हा राव सरकार के समय में विनिवेश की प्रक्रिया शुरू हुई थी। तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने इसकी रूपरेखा तैयार की थी। इस कदम को तब उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी मॉडल) मॉडल का नाम दिया गया। नई नीति के तहत कई ऐसे क्षेत्रों को निजी कंपनियों के लिए खोला गया, जो पहले सिर्फ सरकारी क्षेत्रों के लिए आरक्षित थे। तब सरकार ने तीस हजार करोड़ रुपए की कीमत के उद्यमों को निजी हाथों में बेच दिया था। यह वो वक्त था जब मारुति व पेट्रोलियम कंपनी के शेयर निजी उद्यमियों को बेचे गए।
सरकार हड़बड़ाहट में न उठाए कदम : विनिवेश के कुछ प्रमुख कारण हैं- इनकम टैक्स से आय का लगातार कम होना। कॉरपोरेट टैक्स में सरकार ने जो कर छूट दी है इससे ही उसकी आय 1.45 लाख करोड़ रुपए घट जाएगी। जीएसटी संग्रह भी अनुमान से कम हो रहा है। वहीं दूसरी ओर, सरकार का खर्च पर नियंत्रण नहीं है, बेतहाशा खर्च बढ़ रहा है। राजकोषीय घाटा जिसका लक्ष्य सरकार ने 3.3 प्रतिशत निर्धारित कर रखा है उसके लगातार बढ़ने का अंदेशा है। ऐसे में सरकार के पास विनिवेश के आलावा कोई दूसरा रास्ता बचता ही नही है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में हमने विनिवेश किया था, लेकिन वर्तमान में सरकार जिस तरह हड़बड़ाहट में कदम उठा रही है वह ठीक नही है। सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो विनिवेश वह कर रही है वह बल्क में करे। मतलब एक ही व्यक्ति को हिस्सेदारी बेचे, जिससे कि कंपनी का मैनेजमेंट भी ट्रांसफर हो जाए ताकि सरकार के दाियत्व खत्म हों। हमने इस बात का ध्यान रखा था। तब यह प्रावधान किया गया था कि प्रमुख पीएसयू में सरकार की हिस्सेदारी 26 फीसदी रहेगी। जबकि वर्तमान सरकार लाभ में चल रहे पीएसयू भी बेच रही है।
सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि बाजार की हालत अभी अच्छी नहीं है। बाजार जब अच्छी हालत में होता है तब ही इस तरह के कदम उठाने चाहिए। सरकार में बैठे लोगों को समझना चाहिए कि मजबूरी में जब कोई सौदा किया जाता है तो कीमत कम ही मिलती है। इस समय आप मोलभाव नही कर सकते। जहां तक निजीकरण का आम आदमी पर असर की बात है तो वह वैसे ही बेहाल है। निजी कंपनियां अपने तरीके से काम करती हैं।