चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान श्री हनुमान जी का जन्म दिवस होने के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है. कहते है, कि जब अग्नि देव से मिली खीर, राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को बांट दी, तो कैकेयी के हाथ में से एक चील ने झपट्टा मारकर कुछ खीर मुंह में ले ली, और वापस उड गई. चील जब उडती-उडती देवी अंजना के आश्रम के ऊपर से उड रही तो, अंजना ऊपर देख रही थी.
अंजना का मुंह खुला होने के कारण खीर का थोडा भाग उसके मुंह में आकर गिर गया और अनायास ही वह उस खीर को खा गई. जिससे उनके गर्भ से शिवजी के अवतार हनुमान जी ने जन्म लिया. चैत्र मास की पुन्य तिथि पूर्णिमा के मंगलवार के दिन, जनेऊ धारण किये हुए हनुमान जी का जन्म हुआ था.
हनुमान जयंती के दिन श्रद्वालु जन अपने- अपने सामर्थ्य के अनुसार, सिंदुर का चोला, लाल वस्त्र, ध्वजा आदि चढाते है. केशर मिला हुआ चंदन, फूलों में कनेर आदि के पीलोए फूल, धूप, अगरबती, गाय के शुद्ध घी का दीपक, आटे को घी में सेंककर गुड मिलाये हुए, लड्डू जिन्हें कसार के लड्ड भी कहा जाता है. उनका भोग लगाया जाता है.
नारियल और पेडों का भोग भी लगाने से भगवान श्री हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते है. इसके अतिरिक्त दाख-चूरमे का प्रयोग भोग में किया जा सकता है. केला आदि फल भी चढायें, जाते है. कपूर से श्री राम भक्त की आरती की जाती है. प्रदक्षिणा करके, नमस्कार किया जाता है. भजन कीर्तन और जागरण कराने का विशेष महत्व है.
श्री हनुमान जयंती के दिन सुन्दर काण्ड, हनुमान चालीसा आदि का पाठ किया जाता है. इस तिथि में कई जगहों, पर मेला भी लगता है. जिन स्थानों पर मेला लगता है, उन स्थानों में से कुछ स्थान सालासर, मेंहदीपुर, चांदपोल स्थान प्रमुख है.
ब्राह्मण समूह द्वारा प्राप्त